भय को तुम्हे समझना है, भय क्या है? कैसे उठता है भय ? कहाँ से आता है? उसका संदेश क्या है? बीना किसी पक्षपात के उसमें झंको, तभी तुम समझ पाओगे अगर तुम्हारी पहले से ही धरना बनी हुई है कि भय ग़लत है, कि भय नही होना चाहिए- 'मुझे भयभित नही होना चाहिए' तब तुम उसमें झाक ना पाओगे भाका का आमना - समाना तुम कैसे कर सख्ते हो ? अगर तुमने पहले से ही निर्णय ले लिया है कि भय तुम्हारा दुश्मन है, तो उसकी आँखों में तुम झंक सकते हो? दुश्मन कि आँखों में कोई नही देखता, अगर तुम सोचते हो कि यह ग़लत चीज है तो तुम उससे बचकर निकालना चाहोगे, उसकी उपेक्षा करना चहोते , पहले सारे पुर्वग्रह, सारी धारणऐ , पुरी निंदाकओ छोड़ो भय एक तथ्य है उसका समाना करना है, उसको समझना है,, और केवल समझ के द्वारा ही उसे रूपांतरित किया जां सकता है
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